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क्यूंकि उल्लंघन है स्त्री होना ही।

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तुम्हारे वस्त्र उल्लंघन है, उल्लंघन है तुम्हारा शास्त्र भी।  तुम्हारा हंसना उल्लंघन है, उल्लंघन है तुम्हारा रोना भी।  तुम्हारा नारीवादी सभ्याचार उल्लंघन है, उल्लंघन है तुम्हारे विचार भी।  तुम्हारी गली उल्लंघन है, उल्लंघन है तुम्हारा शहर भी।  तुम्हारी जीत उल्लंघन है, उल्लंघन है तुम्हारी हार भी।  तुम्हारा गीत उल्लंघन है, उल्लंघन है तुम्हारी कविता भी।  तुम्हारा जीवन उल्लंघन है, क्यूंकि उल्लंघन है स्त्री होना ही।

रातरानी

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प्रेम से लिपटे संगीत मेरे कमरे के आँगन में बजते रहते है, संगीत से ताल मिलाकर, जैसी ही तुम अपनी लेखन का मिश्रण उससे करती हो, ढेर सारे पक्षी मुँडेर पर सभा बना सुनते है।  छन-छन करती पायल तुम्हारी, मेरे दिल की बजती धड़कन का आहार सी बन गई है। तुम्हारे श्वासों की सुगंध रातरानी जैसी हो गई है, रात के साथ, दिन में भी कमरे में टहलती रहती है। मेरी किताबों पर धूल जम रही है, कोरे सफ़ेद पन्ने स्याही से दुश्मनी कर बैठे है, जैसे ही पढ़ने और लिखने में ध्यान केंद्रित करता हूँ, क्षण भर में ध्यान, मन और ह्रदय, सभी तुम्हारे चिंतन में खो जाते है। नींद से सपनों तक का सफर छोटा हो गया है।  सपनों में तुम्हें खोजने की अभिलाषा अभी भी जीवित है।  जीवन भर के मेरे प्रयासों में, तुम्हें खोजने का यह भी एक प्रयास है मेरा।  

ਇਕ ਕੁੜੀ

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ਤੇਰੀ ਅੱਖ ਦਾ ਕੱਜਲ਼ ਮੈਂ ਚੰਨ ਨੂੰ ਉਧਾਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ, ਕਮਲੇ ਨੇ ਰਾਤ ਬਣਾ ਓਸਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸਮਝ ਲਿਆ।  ਤੇਰੇ ਹਾਸਿਆਂ ਦੀ ਮਹਿਕ ਫੁੱਲ ਲੈ ਗਏ ਸੀ ਮੰਗ ਕੇ,  ਚੰਦਰਿਆਂ ਨੇ ਤਿਤਲੀਆਂ ਪਿਛੇ ਲਾ ਆਪਣੇ ਸ਼ੋਂਕ ਪੁਗਾ ਲਏ। ਕਦੇ ਪਹਾੜਾਂ ਚ ਫੱਸਦੇ ਬਦਲਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖਿਆ ਕਰ, ਉਹ ਤੇਰੇ ਵਾਲਾਂ ਚ ਮੇਰੇ ਹੱਥ ਵਾਂਗੂ ਉਲਝੇ ਕਿੰਨੇ ਸੋਹਣੇ ਲੱਗਦੇ ਨੇ।  ਤੂੰ ਮੈਨੂੰ ਪੁੱਛਦੀ ਹੈ, ਤੇਰਾ ਹਾਲ ਕੀ ਹੈ?  ਮੈ ਕਹਿਣਾ ਬਲਦੇ ਸੂਰਜ ਨੂੰ ਪੁੱਛ, ਉਹ ਕਿਵੇਂ ਤੱਤਾ ਹੋਇਆ ਫਿਰਦਾ ਤੈਨੂੰ ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਦੂਰ ਵੇਖ।  ਤੇਰੀ ਜੁੱਤੀ ਦਾ ਤਿੱਲਾ ਮੇਰੀ ਡਿਓੜੀ ਚ ਡਿੱਗਾ ਪਿਆ ਸੀ, ਮੈਂ ਸਿਆਹੀ ਲਾ ਉਦ੍ਹੇ ਤੋਂ ਗੀਤ ਲਿਖਦਾਂ ਹਾਂ ਅੱਜਕਲ। ਤੂੰ ਇਕ ਕੰਮ ਕਰ, ਮੇਰੇ ਵੇੜੇ ਆ, ਮੇਰੀ ਮੰਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਛਾਂ ਪਾਜਾ, ਛਾਵਾਂ ਤੇ ਛੱਡ, ਤੇਰੇ ਪੇਜੇ ਬਦਲ ਅਥਰੂ ਸੁੱਟ ਸੁੱਟ ਕੰਨਿਆਂ ਦਾ ਢੇਰ ਲਾ ਜਾਂਦੇ ਨੇ।  ਤੇਰੀਆਂ ਵੰਗਾਂ ਦਾ ਵੱਜਦਾ ਕੱਚ, ਕਿਵੇਂ ਸੰਗੀਤ ਵਾਂਗੂ ਮੇਰੇ ਕੰਨਾਂ ਚ ਵੱਜਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ, ਹੁਣ ਤੇ ਰੇਡੀਓ ਜੇਹਾ ਲਿਆਂਦਾ ਹੈ ਗੀਤ ਸੁਨਣ ਨੂੰ, ਜਿਦੇ ਸਿਗਨਲ ਮੇਰੇ ਦਿਲ ਵਾਂਗ ਧੜ-ਧੜ ਟੁੱਟਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਨੇ। 

थक गई हूँ।

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नोट : यह आत्मिक दर्शन मेरे लिखे नहीं है। असीमित पसंद आया इसीलिए साँझा कर रहा हूँ।  "थक गई हूँ", यही आवाज़ बार बार कानों में एक घड़ी के अलार्म की तरह गूँजती रहती है। फिर देखती हूँ ख़ुद को आईने में और सहलाते हुए कहती हूँ, "बस थोड़ी देर और"। जैसा एक बच्चा राह देखता है छुट्टी हो जाने के बाद अपने माता - पिता की, कुछ वैसा ही इंतज़ार मेरा है।  यह नहीं पता कि वो बच्चा घर जा कर क्या करेगा, पर शायद इसी उत्साह के साथ कि घर में माँ होगी जो प्यार भरे हाथों से खाना परोस देगी और फिर ममता की चादर ओढ़ सुला देगी। वह दिन भर की थकान भी दो पल के लिए गायब हो जाती है।  इंसान बेहद अजीब है, पहले पदार्थवादी वस्तुओं के पीछे भागते हुए सेहत और रिश्ते गवा देते है, और जब तक वह चीज़ें मिलती है, न सेहत रहती है और ना ही रिश्ते।

सीख

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 ऊँचे घने वृक्षों की छाया में चलते, जब तुम सूर्य की रोशनी की और चलोगी, जब तुम्हारे पाँव धूप पर पड़ी सुखी पत्तियों पर पड़ेंगे, वही समय होगा, जब तुम एक लड़ाई जीत लोगी।  जिस अंधकार से तुम्हें घृणा थी, वह एक प्रिय मित्र की तरह, तुम्हारे आने वाले जीवन का मार्गदर्शक बनेगा। तुम्हारे जीवन संवाद एक संतुलन के अंतर्गत होंगे, जिसमें कठोरता और कोमलता का मिश्रण होगा।  तुम जैसे ही वही ऊँचे वन के अन्धकार में, खुद को फिर से पाओगी, तुम्हें एहसास होगा, अन्धकार और रौशनी, दोनों जीवन में पर्याप्त होने चाहिए।  तुम जैसे ही इस स्तिथि का मनोविश्लेषण करोगी, सभी चिंताएं, भय, विरोध, जो तुमने खुद को भेंट किए थे, वह धीरे- धीरे तुमसे छूटते चले जाएँगे। 

आकार

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तुम्हें एक आकार दिया है। मित्र कहते है समझाओ, दिखाओ, बताओ। मैं अपनी लिखी कविता का एक भाग सुना देता हूँ, वो तुम्हें आधा देख अपने घर को चल देते है, सोने गहरी नींद में। उस भाग में वो इतना मानसिक शांति पा लेते है, जितना मुझे कुछ वर्ष पहले वर्षावन में आया था। तुम्हें लिखना जैसे ही शुरू करता हूँ, भाषा एक स्थायी साधना में चली जाती है। शायद वो साधना बुद्ध द्वारा भी की गई होगी। क्यूंकि जब भी भाषा लौट आती थी, पहले से स्थिर, शांत और विनम्र ही मिलती है। मुझे तुम्हें ऐसी जगह लिख आना है, जहाँ से पृथ्वी के सभी संसाधन आते है। मनुष्यों द्वारा की गई पृथ्वी-विरोधी गतिविधियों को, अब तुम ही शुद्ध कर सकती हो।