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हम फिर मिलेंगे

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चाँद आधा जब पूर्ण की और चल देगा  सूर्य जब सवेर को खिलने का बल देगा  हम वहाँ भोर में फिर मिलेंगे  तुम आना एक डब्बा दाना लेकर  मैं ले आऊंगा भूखे पक्षी कुछ  जब तक वह उन्हें चुगेंगे  छठ रही ओस में हम फिर मिलेंगे  केतली यादों की मैं लाऊँगा  कप और बातें तुम ले आना  आधा आधा कप साथ भरेंगे  अरसों बाद चाय पर फिर मिलेंगे  रौशनी भूखी जब तारे खा जाएगी काम निपटा चुकी माँ जब उठने की डाँट लगाएगी बस अभी उठ गए का जब झूठा वादा करेंगे  पौने जगे सपनों में हम फिर मिलेंगे

साधन हो तुम

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क्रोध से भरी भीड़ में अमन का साधन हो तुम   चक्रव्यूह में लड़ते अभिमन्यु के साहस का साधन हो तुम  देशों में चलती आ रही लंबी लड़ाई  की सुलह का साधन हो तुम  मेरे भीतर उठ रहे विवादों  को संवाद देने का साधन हो तुम हर क्षण घट रही मृत्यु  को जीवन देने का साधन हो तुम  घृणा में भटक रहे इस संसार  को अनुराग के राह का साधन हो तुम  साधन हो तुम  वृक्ष में अंकुरित ऋतु फल का  मेरे आज और इस समय के पल का  साधन हो तुम  मेरी रचना का, मेरे काव्य का, मेरे गीत का  साधन हो तुम  मेरे हृदय की धड़कन के संगीत का

मेरी कल्पना

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विशाल चट्टानों में से उपजा जो एक वृक्ष दिख रहा है  वैसे है मेरी कल्पना  मुठ्ठी में पकड़ी रेत जो सर सर गिरते चली जा रही है  वैसी है मेरी कल्पना  चिल्लाते शहर के शोर की जो वन से सुलह करवा रही है  वैसी है मेरी कल्पना  मृत्यु के आगमन पर जो नए जीवन का आभार मना रही है  वैसी है मेरी कल्पना  दुःख और सुख को भोगता से द्रष्टा की और जो ले जा रही है  वैसी है मेरी कल्पना  गहरे दब चुके ढेरों सत्य को जो खोद खोद प्रस्तुत करते चली जा रही है  वैसी है मेरी कल्पना स्त्री को पुरुष के भय से और पुरुष को स्त्री की देह से  जो मुक्त कर दे पा रही है ऐसी है मेरी कल्पना

घर क्या है?

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जीवित कोई नदी शांत सागर में बिन सड़क बने पहुँच रही हो वह घर है अनसुनी प्रतिभा, उपहास से उलझ कर विश्व प्रसिद्धि में पहुँच रही हो  वह घर है स्त्री की देह, दुर्बल नर की लठ से नहीं प्रेम की हठ से पहुँच रही हो वह घर है रात की नींद शारीरिक थकान से नहीं दिन के आभार और नए सूर्य की स्वीकृति से पहुँच रही हो वह घर है आस्था हमारी अप्राकृतिक कार्यों को ख़ारिज कर समता में पनप रहे जीवन दर्शन से हम तक पहुँच रही हो वह घर है   विभिन्न शैली की पुस्तकें अनावश्यक वस्त्रों को त्याग आप तक पहुँच रही हो वह घर है मृत्यु किसी भय से नहीं मधुर और संतुष्ट हास्य से लिपट कर पहुँच रही हो वह घर है