वो क़र्ज़ लौटाना था तुम्हे
वो क़र्ज़ लौटाना था तुम्हे , पर तुम चले गए। वो फ़र्ज़ लौटाना था तुम्हे , पर तुम चले गए। वो कबूतर रूठे बैठे हैं , अब खाना खाने नहीं आते। उस भरे कसोरे में , अब वो नहाने नहीं आते। पतंगों से भरा कोठा , थोड़ा सुनसान रहता है। वो ऊँची पतंग हमारे घर से है , शहर उससे थोड़ा अब अनजान रहता है। वो पौधे , जो लगाए थे तुमने , काफ़ी बड़े हो गए हैं। बे-मौसमी हवाओं को चीरते , अपने पैरो पर खड़े हो गए हैं। उन पौधों पर फूल आ रहे हैं , ये बात बतानी थी तुम्हे। और उन खिलखिलाते फूलों की महक़ , लौटानी थी तुम्हे। पर दुःख इस बात का है , तुम चले गए हो। हम पर भारी कर्ज़ छोड़े। हाँ तुम चले गए हो।