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रास्ता और मंज़िल

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मैं उस रास्ते चला हूँ, जो मुझे, मुझतक ले जाएगा।  मंज़िल भी मैं ही हूँ, और रास्ते की ठिठुरती ठंड भी।  हवाएं ठंडी और तेज़ है, नाक मुँह सुन्न करती चली जा रही है।  पर पाँव और इरादे, दोनों गरम है। उसी रास्ते के लिए, जो मुझे, मुझ तक ले जा रहा है।  आसान नहीं है ये रास्ता, मुश्किल भी अब कहां लगता है।   मेरे साथ अब मै ही चल रहा हूँ। बस अब मुझे वहां नहीं रहना, जहाँ मैं कल रहा हूँ। मौत आएगी, तो देखा जाएगा। ज़िंदा देख, शायद थोड़ी दूर वो भी साथ आ जाए। ज़िद्द के कपड़े नहीं उतारूंगा, तो थोड़ी शरम, वो मेरी हिम्मत से भी खा जाये।  दूर से कोई हाथ हिलाता दिखा,  मंज़िल आ गई है। रुकिए, यह तो मै ही हूँ। क्या यही मंज़िल है? यह तो रास्ता है।  तो मंज़िल कहाँ हैं? रास्ता, जहाँ तुम चल रहे हो।  उठो, नया सवेरा फिर तुम्हे लेने आया है।