मैं कौन हूँ?


मैं कौन हूँ?
शायद उस गहरे समंदर का पौधा हूँ,
जिसका कोई काम नहीं है, 
न उसे कोई खाता है,
न उसकी कोई सुगंध है,
गहरे नमकीन पानी में, 
जब नज़दीक से कोई मछली गुज़रती है,
या कोई लहर समंदर की ज़मीन को छूने आती है,
बस लहर जाता हूँ,
जैसे, एक बच्चा चेहरे पर ख़ुशी का आधा चाँद बना लेता है,
खिलौना मिलने पर।

शायद मैं वो तारा हूँ,
जिसे कोई देखता नहीं, 
ध्रुव के एकदम बगल वाला, 
कभी कभी चाँद के नज़दीक आ जाता हूँ, 
कोई कामना मांग ले, टूटता भी नहीं, 
बस मौजूद हूँ, 
ढेर सारे तारों के आकाश में, 
एक दूध के समंदर की बूँद जैसा।

शायद मैं उस माँ का बेटा हूँ, 
जो कभी हारी नहीं, 
ना ही कभी जीत पाई है, 
पर खुश है, मेरी ख़ुशी देख,
या उस बाप की औलाद हूँ,
जिसने छुपकर सिनेमा के पैसे दिए, 
पहली शराब का घुट पिलाया,
या उस शख्स का भाई हूँ, 
जो पिता का नकाबपोश है
या चेला हूँ उस गुरु का,
जो द्रोण तो है, पर मैं एकलव्य नहीं।

कौन हूँ मैं?
शायद वो हवा हूँ, 
जो न ठंडी है न ही गर्म,
जो पत्तियों को हिलाकर नींद से जगाती है। 
शायद एक किताब हूँ,
छोटी छोटी कहानियों वाली,
जिस में पूर्ण विराम नहीं है, 
बस अल्प विराम और अर्ध विराम है। 

मैं कौन हूँ?
जो उस चेतना को जान रहा हूँ,
जो मुझे भीख में सांस दे रही है, और खाना भी।
मैं शायद एक जादूगर भी हूँ,
जिसे चमत्कार करना नहीं आता। 

मैं शायद एक इंसान हूँ,
जिसे इंसानियत सीखनी पड़ रही है।
या एक औरत का चीखता सन्नाटा हूँ, 
जो बहरे के आगे चिल्ला देता है। 

शायद वो स्त्री का प्यार हूँ, 
जो किसी और के इश्क़ में है,
एक ऐसी चाहत के क़ब्ज़े में, 
जिसके पास गुलाब है, काग़ज़ का,
या एक लंबी गाड़ी है,
जो धुआँ छोड़ मेरी सांस को ज़हरीला बना देती है। 

मैं कौन हूँ?
शायद एक मुसाफिर,
जिसके पास कोई बोझ नहीं है,
न धर्म का, न पाप का, 
न ही कोई घटना के पश्चाताप का। 
मैं एक मृत्यु भी हो सकता हूँ,
जो जीना सीख रही है।
या मैं एक कवि हूँ,
जिसे कविता लिखनी नहीं आती।

एक जलता सूरज हूँ शायद,
जो रात को खा जाता हैं,
शोर से भरी थाली में,
जिस मे तारे और चाँद भी होते है। 

शायद मैं एक इंतज़ार हूँ,
बाँझ औरत का, 
जिसकी हस्ती समाज खा गया है,
जिसे चित्र बनाना अच्छा लगता था,
उसका कैनवास अब खाली पड़ा है। 

मैं, मैं हूँ। 
एक तलाश हूँ,
जिसने खुद को तलाशा है, और तलाश रहा है।
मैं प्रकृति हूँ, जो खुद को बर्बाद कर रही है, 
ताकि मैं आबाद रहूं।

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