आधी तुम


तुम वो किताब हो,
जिसे आधा पढ़कर फाड़ दिया गया है,
और पूरा पढ़ना अब असंभव सा लगता है।

तुम टीवी पर बजता वो गीत हो,
जिसका अंतरा आना अभी बाक़ी है,
और बिजली चली गई हो।

तुम दादी माँ द्वारा सुनाई जा रही कहानी हो,
जो अभी आधी हुई है,
और सुनाते-सुनाते वो खुद खर्राटे लगाने लगी है।

तुम मेरे माँ और भाभी के काम की तरह हो,
जो दिन भर करने के बाद भी,
आधा रह जाता है।

तुम मेरी आधी लिखी कविता हो,
जिसमें अभी प्रेमी-प्रेमिका मिले ही है,
और प्रेम करना अभी बाक़ी है।

तुम मेरा जीवन भी हो,
जिसे पूरा करना तुम्हारे बिना, 
अब कठिन लगता है।

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