धैर्य बैठा रहता है प्रेम के साथ

प्रेम, धैर्य की संगिनी है जैसे सुर से लिपटा रहता है संगीत माँ से ममता साधु से साधना मन से इच्छा वैसे ही धैर्य बैठा रहता है प्रेम के साथ बात नहीं करते दोनों पर मृत्यु संभव है एक के भी छूटने से प्रेम का काम वचन है और धैर्य का दर्शन कहानियों की मुख्य भूमिका में रहते है प्रेमी जोड़े पर हाथ में हाथ लिए चलते होते है प्रेम और धैर्य दर्शन और संवाद जैसे है प्रेम और धैर्य इनका साथ रहना ऐसा है जैसा है वन में जीवन रहना एक का जाना, ले जाता है अपने साथ अमन तभी शहर भरें रहते है मंद चेहरों से, भय के पहरों से पृथ्वी ने कितना ही धैर्य रखा होगा तभी जग पाया प्रेम का जीवन इन्हें अलग करना देह से चेतना अलग करने जैसा है