नई धरती का संविधान।
जब कभी भी धरती का सृजन फिर से किया जाएगा, मैं चाहूँगा उसका संविधान तुम रचो। तुम लिखोगी कानून, प्रेम और करुणा के। तुम उस संविधान में जात-पात, अहिंसा, असमानता, अमीरी-गरीबी नहीं लिखोगी तुम लिखोगी अमन की बातें, तुम नहीं खींचोगी देशों की लकीरें, तुम्हारे कानून बातें करेंगे आसमान की, पेड़ और पौधों की, पक्षी और पशुओं की, सागर और पहाड़ों की, झरने और झीलों की। उस संविधान के कोई भी पन्ने पर रक्तपात न होगा, न ही उसमे होगा ईश्वर और न कोई परमेश्वर। सब साधारण से होंगे और भाषा होगी शालीनता की। मैं तो उसे धरती नहीं बुद्ध ग्रह बोलूँगा। उस समाज में जन्म से बुद्ध बनने की प्रक्रिया पढ़ाई जाएगी। उस संविधान के कानून स्त्री-पुरुष में भेदभाव नहीं करेंगे, न ही उसमे पैसे का लेनदेन किया जाएगा, छोटे-छोटे गांव बना देना तुम थोड़ी थोड़ी दूर, बच्चे कॉलेज स्कूल नहीं पड़ने जाएँगे, पढ़ेंगे वो बस अपने अनुभवों से, मुराकामी, बटालवी, रूमी और कामू के लेख समझाएंगे। वह धरती एक सुन्दर सा कॉर्टून होगा, जहाँ हर व्यक्ति प्रेम से भरा हुआ है। धरती का सृजन जब भी होगा, मैं चाहूँगा, उसका संविधान तुम ही लिखना, क्यूँकि तुम लिख...