मुझे अभी दूर जाना है - गोपाल
जहाँ अहम, ज्ञान की रौशनी को सुलाता है
दिन में व्यर्थ के सपनों को सजाता है
अपराध की दावत में झूठे तारों को भी बुलाता है
मुझे उस रात से निकल दिन की और जाना है
अभी मुझे दूर जाना है
जहाँ आकाश से धरती दूर दिखती है
इंसान की हर वासना धन मैं बिकती है
कलम हर पल जहाँ हिंसा लिखती है
मुझे वहाँ से दूर चले जाना है
जहाँ संबंध बस व्यापार के हैं
बहुमत मन, शत्रु, प्यार के हैं
जहाँ नशीले गीत ऊँचे सुर पकड़ते हैं
मनुष्य मृत्यु से नहीं, अहंकार में अकड़ते हैं
उस जीवन से मुझे दूर जाना है
जहाँ तक नेत्र सागर के दर्शन भरता है
सायं का भोजन जहाँ सूर्य करता है
जहाँ संत, अज्ञान से भरे पड़े हैं
प्रेम में भरी पड़ी क्रूरता की जड़ें हैं
उन सबसे दूर रुक-रुक चले जाना है
मुझे अभी बहुत दूर जाना है
Very nice
ReplyDeleteAnother splendid work 💓💯
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