पिता के लिए पत्र


पा,

कैसे हो? यह प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता, जैसे नहीं मिलता अब छुपके से दिया गया जेब खर्च। जीवन बहुत साधारण सा है, इतना कुछ पास होने के बाद भी। पतंगे भी अब वो उत्साह नहीं दे पा रही। जिससे आप आखिरी बार मिले थे, मैं अब वो गोपी नहीं रहा हूँ। मुझे, मुझसे मिलने के लिए सिगरेट का सहारा लेना पड़ता है। आपकी पोती भी मुझे गोपी कह कर पुकारती है, जैसे आप पुकारते थे। पा, अगर पता होता जीवन ऐसा जाएगा आपके जाने के बाद, तो आपकी देह को कभी कहीं छोड़ कर न आता। मुझे आपकी तस्वीर ऐसे याद है कि आप हवेली वाले घर के बाहर वाले कमरे में एक टांग पे टांग चढ़ाकर बैठे है और पी रहे है चाय। पा, जो जब नहीं था, अब सब है, गाड़ी है वो भी दो। अच्छा ख़ासा धन है, कपड़े सब ले रखे है, फिर भी नींद आने से पहले यह हाथ ढूंढा करते है किसी की टाँगे, मालिश के लिए।


मैं नहीं अब रखता खुद को यादों की संगत में, पर फिर भी जीवन में उदासी का आना तो लगा रहता है, आपके होते कम आती थी, पर अब उदासी निचोड़ ले जाती है। आपके दोनों बेटे बड़े हो गए है। अपने निर्णय खुद लेते है। खुद कमाते है, खुद खाते है। आप होते तो घर में बैठे क्या ही विश्राम करते। शादी हो गई है भाई की, एक गुड़िया है, बहु से भी कोई शिकायत नहीं है, एक सुन्दर भावना है वह स्त्री। सब सुख घेरे हुए है, पर मन ढूंढना बंद नहीं कर रहा। क्या खोज रहा है, आपको। हम जो सुख में जीवन व्यतीत कर रहें है, वह सुख की नींव आपने रखी है। नैतिकता के पाठ जो घोल घोल कर बचपन पिलाया हैं, आज वह काम आ रहें है। हम जहाँ से आए है, यह बस हम ही जान सकते है। पंद्रह सौ पर काम करने वाले आपके दोनों लड़कों ने बीस लोगों को नौकरी पर रखा हुआ है। हर सर्दियाँ में नए जैकेट-स्वैटर लेते है, घर में बैटरी लगी है, सीट भी इंग्लिश लगवा रखी है, वो भी दो-दो, और बाथरूम में दरवाज़ा भी है, और जैसे घर में हम सब साथ रहते है, उतना तो एक कमरा है। बड़ा बेटा अभी भी घर समय कम ही बिताता है, आप होते तो वह गालियाँ खाता और शाम की चाय कभी-कभी अपनी बीवी संग बैठ कर पीता। आपकी पोती आपकी तस्वीर देख कर आपको पहचान लेती है, और पूछती है दादू कहाँ है, और इसका सही उत्तर मिल नहीं रहा है, महँगे वाले विद्यालय में पढ़ने जाती है, एकदम नए कपड़े पहनकर। आप होते तो भावना आपके पास आकर भाई की शिकायत कर देती, अब उसकी शिकायत सुनने वाला कोई नहीं है।आपकी बहन नीलम की हूबहू कॉपी है भावना, एकदम गाय।

पा, आपकी बीवी बूढ़ी हो रही है, उसकी आँखें नानी की आँखों की तरह रंग बदल रही है, घुटने दर्द करते है, आपका ब्लड प्रेशर कम रहता था, उसका चढ़ा रहता है। खाली बैठना उसे अभी भी पसंद नहीं है। सुबह की चाय न सही, पर शाम की चाय अधिकतर मैं माँ के साथ ही पीता हूँ। आपकी बीवी के पास सोने के कंगन भी है। मैं बहुत परिश्रम करता हूँ, उनके पास रहूँ, उनका ध्यान रखूँ, पर कुछ न कुछ छूट ही जाता है। मुझे देखना था, माँ ने बचपन में हमारा कैसे पालन किया होगा, वह देख पा रहा हूँ, सानवी को दो माँ मिली हुई है, पर बिगड़ी नहीं है बिलकुल भी। पा, सब है यहाँ, आपकी कमी महसूस नहीं होनी चाहिए, जीवन दुःख है, पर पहले क्यूँ नहीं था। दूकान के पास चला जाता हूँ कभी, वहाँ सब वैसा ही है, पहचान लेते है अभी भी सब मुझे। आपका बेटा, छोटे वाला, जिससे आप झगड़ा करते थे, प्रेम करते थे, जो आपका सबसे प्रिय था, वह इस परिश्रम में लगा रहता है, आपके कानून कैसे घर पर लागू करूँ। कैसे स्थापित कर सकूँ प्रेम को घर पर। कैसे सुनने लायक हो जाऊँ दुःख हर इंसान के, कैसे मदद कर सकूँ अपने आस पास के लोगों की। पा, आपका यह बेटा भी कुछ प्रयास में लगा है, कुछ बड़ा करने के, पर आज का जीवन भी पिछले से बहुत बड़ा ही लगता है। उसने किसी से प्रेरणा लेकर एक किताब भी लिखी है। आप होते तो सबको बाँट आते वो किताब। जितने पैसों की हमारी महीने की कमाई थी अब उससे अधिक का गाड़ी पेट्रोल पी जाती है। मुझे आपकी याद बहुत कम आती है, पर जैसे ही ध्यान हवेली वाले घर के बाहर वाले कमरे की और जाता है, अपना आज का जीवन कितना छोटा लगता है। पा, माँ कहती है मैं हर तरह से अपने पापा जैसा हूँ, मैं हूँ नहीं, न बन पाऊँगा, बस जब भी ध्यान करने बैठता हूँ, यही आस में बैठता हूँ कि आपका किरदार ओढ़ लूँ और जो भी बात आपसे करनी है, खुद से कर लूँ। पा, मेरे जीवन का बहुत हिस्सा कभी मेरी आँखें नम नहीं करता, पर आपकी याद का आना आँखें तो नम करता ही है और मुझे उस समय में ले जाता है, जब जीवन में पतंग के पैसे न हो तो पता था, पापा कहीं से पतंग लूट कर दे देंगे। कितने ही संकट के सागर पार किए है, पर इतने बड़े नहीं लगते थे वह, पता था आप डूबने नहीं दोगे। पर अब संकट का सागर खूब गोते लगवाता है, मृत्यु तक ले जाता है और फिर से जीवन की आशा दे जाता है। ईश्वर ने मित्र अच्छे दिए है, बाकी भाई की छाया तो रहती ही है। माँगना तो आज भी नहीं पड़ता उससे, सब दे देता है वह मुझे। पर मेरे बीमार होने पर पाव भाजी नहीं खिलाता। आपसे शिकायत करनी थी उसकी। पा, जीवन ने इस वर्ष बहुत गोते खाए है, पर बच जाता हूँ किसी तरह, हो सकता है आप ही रक्षक होंगे। आपकी कमी महसूस होती है आजकल, फिर माँ के साथ चाय पीता हुआ सोचता हूँ, यह स्त्री से अधिक आपको कौन ही याद कर पाएगा, उसके होठों पर हास्य की जवाबदेही भी तो देनी है आपको। एक ही तो जिम्मेदारी आप मुझे सौंप कर गए हो। मैं जीना सीख रहा हूँ आपके बिना, जिस क्षण सीख जाऊँगा तो हवेली वाले घर जाकर एक कप चाय पी आऊँगा। 

आपका गोपी 

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