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Showing posts from September, 2025

ਆ ਮੇਰਾ ਸੱਜਣ, ਫੇਰ ਵੀਚਾਰੀਏ

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ਆ ਮੇਰਾ ਸੱਜਣ, ਫੇਰ ਵੀਚਾਰੀਏ  ਓਸਨੂ ਮੇਰੀ ਕਲਮ ਤੋਂ, ਫੇਰ ਨਿਹਾਰੀਏ  ਠਰਦੀ ਤੜਕੇ, ਪੈਲਾਂ ਪਾਉਂਦਾ, ਚਾਨਣ ਓਹਦਾ  ਧੁੱਪ ਤੋਂ ਵਧੇਰੇ ਨਿਗ੍ਹਾ, ਪਛਾਨਣ ਓਹਦਾ  ਫੂਲਾਂ ਨੂੰ ਇਤਰ, ਓਹਦੇ ਸਾਹ ਨੇ ਦੇਂਦੇ  ਸੁੱਕੇ ਗੀਤਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ, ਓਹਦੇ ਚਾਹ ਨੇ ਦੇਂਦੇ  ਬੁੱਕਲ ਓਹਦੀ, ਆਸਾਂ ਦੇ ਆਲ੍ਹਣੇ ਵਰਗੀ  ਸਿਆਲ ਦੀ ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ, ਬਲ੍ਹਦੇ, ਬਾਲ੍ਹਣੇ ਵਰਗੀ  ਰਾਤਾਂ ਨੂੰ ਚਾਨਣੀ, ਓਹੀ ਫੇਰਦਾ  ਹਿਜਰ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਨੂੰ ਫੈਲਣ ਤੋਂ, ਓਹੀ ਘੇਰਦਾ  ਓਹਦੇ ਹਾਸੇ ਹੇਠਾਂ, ਰੱਬ ਵੱਸਦਾ ਹੈ  ਓਹਦੀ ਗੱਲ਼ਾਂ ਸੁਨ, ਹਿਜ਼ਰ ਦਾ ਰੋਇਆ, ਫੇਰ ਹੱਸਦਾ ਹੈ  ਪਹਾੜ ਜੇ ਬਣ ਜਾਣ, ਹਾਣੀ ਓਹਦੇ ਮੀਠੀ ਛਬੀਲ ਵਰਤਾਣ, ਵੱਗਦੇ ਪਾਣੀ ਓਹਦੇ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਬੈਠਾ, ਮੇਰੀ ਔਖੀ ਰਾਤ ਲੰਗਾਉਂਦਾ ਹੈ  ਸੱਜਣ ਮੇਰਾ, ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਗੀਤ ਲਿਖਾਉਂਦਾ ਹੈ    ਸੱਜਣ ਮੇਰਾ ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਗੀਤ ਲਿਖਾਉਂਦਾ ਹੈ

कवि तीन प्रकार के होते है

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कवि तीन प्रकार के होते है  विद्रोही, दार्शनिक और प्रेमी  मंटो लिखे तो विद्रोह  कामू लिखे तो दर्शन  और बटालवी लिखे तो प्रेम  उपाधि इन्हें कवि की ही मिलती है  यह तीनों जोड़ है तिपहिया वाहन के ढो लेते है कितनी भावनाएँ इधर-उधर कवि होना चमत्कार नहीं है  जैसे वृक्ष हरा ही होता है  पर्वत ऊँचा, सागर गहरा  इंसान होता ही है कवि  शब्दकोष मन में रखना भी तो कविता है जैसे माँ रसोई में पड़ी गर्म तेल की छींट का दर्द रखती है मन में  जैसे पिता रख लेते है व्यापार के घाटे का क्रोध मन में  जैसे भूख में पले प्रेमी, रखे रहते है विरह का शोक मन में  हम सब कवि ही तो है  कुछ कविताएँ लिख रहे है और कुछ जी रहे है ईश्वर, प्रेत, डाकू, सरकार, दर्शन, प्रेम, इतिहास, आदि सब लिख लेते है कवि  कवि, सब कर सकता है  पर नहीं कर सकता वह ढोंग  प्रेम का, दर्शन का और विद्रोह का  उसे इन तीनों में से एक गुण में उतरना पड़ता है  तभी लिख सकता है वह प्रेम में किए गए विद्रोह के दर्शन  और कहलाया जाता है कवि

पिता के लिए पत्र

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पा, कैसे हो? यह प्रश्न का उत्तर नहीं मिलता, जैसे नहीं मिलता अब छुपके से दिया गया जेब खर्च। जीवन बहुत साधारण सा है, इतना कुछ पास होने के बाद भी। पतंगे भी अब वो उत्साह नहीं दे पा रही। जिससे आप आखिरी बार मिले थे, मैं अब वो गोपी नहीं रहा हूँ। मुझे, मुझसे मिलने के लिए सिगरेट का सहारा लेना पड़ता है। आपकी पोती भी मुझे गोपी कह कर पुकारती है, जैसे आप पुकारते थे। पा, अगर पता होता जीवन ऐसा जाएगा आपके जाने के बाद, तो आपकी देह को कभी कहीं छोड़ कर न आता। मुझे आपकी तस्वीर ऐसे याद है कि आप हवेली वाले घर के बाहर वाले कमरे में एक टांग पे टांग चढ़ाकर बैठे है और पी रहे है चाय। पा, जो जब नहीं था, अब सब है, गाड़ी है वो भी दो। अच्छा ख़ासा धन है, कपड़े सब ले रखे है, फिर भी नींद आने से पहले यह हाथ ढूंढा करते है किसी की टाँगे, मालिश के लिए। मैं नहीं अब रखता खुद को यादों की संगत में, पर फिर भी जीवन में उदासी का आना तो लगा रहता है, आपके होते कम आती थी, पर अब उदासी निचोड़ ले जाती है। आपके दोनों बेटे बड़े हो गए है। अपने निर्णय खुद लेते है। खुद कमाते है, खुद खाते है। आप होते तो घर में बैठे क्या ही विश्राम करते। शादी हो गई ह...

बिरहा का गीत

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बिरहा का गीत ऐसा सुनाओ  रो ही पड़े बिछड़ी दो नदियाँ सुन्न करदे जो बिदाई होती दुल्हन जैसा वो गीत में सारे अधूरे प्रेम नम हो जाएँ माँ की धड़कन रुक गई हो ऐसा दर्द दे  वह बिरहा का गीत बटालवी, फिरसे जीवित हो कर गाए  और नुसरत का सुर उसपर संगीत सजाए  मुझे नहीं सुननी अब किसी कवि की कविताएँ  नहीं पड़ने अब प्रेम उपन्यास और पत्र  बिरहा का गीत मुझे पहाड़ बनाएगा  पहाड़ का रोना प्रलय जैसा है पहाड़ सह जाता है बर्फ़, धुप, वर्षा और कटाई  फिर भी खड़ा रहता है विशाल, अमन को ओढ़ कर मुझे बिरहा का गीत ऐसा सुनना है  रो पड़े मेरी माँ मेरा दुःख देखकर और बोले "उसे मैं मनाकर देखूँ"