मुझे शुन्य हो जाना है।


मुझे स्थिर हो जाना है,
हिमाचल के गाँव के जीवन की तरह।
मुझे सचेत हो जाना है,
शिशु के रोते ही माँ की तरह।

मुझे निष्पक्ष हो जाना है,
बुद्ध के सिखाए धर्म की तरह।
मुझे नीरव जो जाना है,
प्रेम-धागे से बुनी स्त्री की तरह।

मुझे मौन हो जाना है,
विपश्यना करते संत की तरह।
मुझे गतिहीन हो जाना है,
विशाल पर्वत पर सनी बर्फ़ की तरह।

मुझे मृत्यु हो जाना है,
बीत चुके हर क्षण की तरह।
मुझे सरल हो जाना है,
जीवनज्ञान से पूर्ण मेरी प्रेमिका की तरह।

मुझे शिथिल हो जाना है,
  शेषनाग तले सो रहे विष्णु की तरह।
मुझे सुगंध हो जाना है,
कमल सुगन्धित द्रौपदी की तरह।

मुझे जीवन हो जाना है,
मनुष्य रहित वन की तरह।
और मुझे शब्द हो जाना है,
कवि द्वारा रचने वाली हर कविता की तरह।

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