कहानी: खुली खिड़की


माही, हाँ यही नाम है उस लड़की का जिससे पहली मोहब्बत हुई। तीन साल पहले की बात है। मैं और माही एक ही कम्पनी में काम करते थे। मैं वहां लेखक के रूप में था और वो सॉफ्टवेयर वाले डिपार्टमेंट में काम करती थी। किसी बहाने बातचीत शुरू हुई तो मैंने एक दिन माही को कॉफ़ी के लिए पूछा तो उसने हाँ कर दिया। लेखक तो मैं था ही, तो माही को मेरी बातें पसंद आने लगी। यक़ीन मानिए कुदरत का एक नायाब तौफ़ा थी वो। एक साल ऐसे ही मिलना-झूलना चलता रहा। वैलेंटाइन नज़दीक था तो मैंने मन बना रखा था कि माही को प्रोपोज़ करूंगा। और मैंने ऐसे ही किया। माही ने भी बिना समय लिए हाँ कर दी।

न ही माही के घरवाले उसके साथ रहते थे और मेरे तो माँ बाप तो बचपन में ही मेरा साथ छोड़ गए थे। तो कुछ समय बाद माही और मैंने निर्णय लिया कि हम दोनों साथ रहेंगे जब तक शादी नहीं कर लेते। शहर से थोड़ी ही दूर हमने एक बगीचे वाला घर ले लिया। एक गांव ही था वो जो शहर से डेढ़ घंटा दुरी पे था। मुझे घर बैठे काम मिलना शुरू हो गया तो में घर ही रहता था और माही ऑफिस जाती थी। गांव से बस जाती थी एक जो सुबह माही को छोड़ती शहर और माही आती भी उसी से थी। ज़िन्दगी बहुत साधारण और अच्छी चल रही थी।

माही एकदिन मुझसे बोली "चलो न, कही घूम कर आते है कुछ दिन के लिए"। तो मुझे कुछ काम आया था तो मैंने टाल दिया। हमारे घर के कमरे में एक खिड़की थी और मैंने लिखने के लिए टेबल वहीं लगा रखा था। खिड़की के बाहर ही बगीचा था जिसमे कुछ पेड़ भी थे। रात में कभी-कभी चाँद से संभाषण भी हो जाता था। वो खिड़की दिन रात खुली रहती और मैं वही बैठा काम करता रहता।

मुझे यह तो पता था कि सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करना आसान नहीं है। इंसान अपनी वास्तविक्ता खो देता है। इसलिए समय समय पर छुट्टी लेना सही रहता है। पर में माही को हाँ न कर पाया क्यूंकि मुझे वह काम देना था। उस खिड़की पर एक बोगनवेल आ लटकी जो मुझे बहुत पसंद थी। मैं दिन रात वहीं बैठा, सोचता, लिखता और उस खिड़की से बातें करता रहता। माही भी मुझे कभी कभी चिढ़ाती थी "बस इसी से शादी कर लेना"। मुझे लिखना इतना अच्छा लगने लगा था जैसे मुझे लगता था बस वही खिड़की मुझे समझ पा रही है। माही कब आ रही है, जा रही है। ये खबर भी कम रखने लगा था। माही की जैसे वो खिड़की सौतन हो गयी थी।

मेरी आदत थी, मै माही के लिए सुबह चाय नाश्ता बनाता था। अब तो उसका भी ध्यान कम रेहने लगा था। मुझे ये एहसास भी नहीं हुआ कि माही ने मुझसे बात करनी भी बंद कर दी थी।

एक शाम मैं रोज़ की तरह बैठा लिख रहा था तो इतने में माही का फ़ोन आया। उसकी बस छूट गई थी। उसने बोला वो वही सहेली के वहां सो जाएगी। मैने उसे तसल्ली दे फ़ोन रख दिया। ऐसा फिर हफ्ते में दो-तीन बार होने लगा। उन्ही दिनों माही का जन्मदिन आने वाला था तो मेने मनाली की टिकेट करवा ली और सोचा माही को सरप्राइज दूंगा। माही घर लौटी तो मैने माही को बताया “ हम मनाली जा रहे है”। तो उसने यह कह मना कर दिया, “उसे बहुत काम है दफ्तर में, तुम अपनी खिड़की को ले जायो”। और ये भी कहा, “मेरी छुटियाँ नहीं बची है”।

तो वो सोने चली गई और मैं फिर से खिड़की पास जा कर बैठ गया और काम करने लगा। नींद खुली सुबह तो माही जा चुकी थी।

मुझे पता था माही नाराज़ है तो मैं उसके लिए खाना बना कर शहर चला गया। वहा जा कर पता चला, माही ऑफिस नहीं आई और पिछले दो महीने से वो बहुत कम आ रही है।

मुझे बहुत हैरानी हुई।

मैं घर आकर खिड़की से ये बात कऱ ही रहा था और माही आ गयी। मैंने माही से कुछ पूछा नहीं और उसे बोला "मैं कल सुबह तुम्हारे साथ शहर चलूँगा, मुझे वहां से कुछ सामान लेना है"। तो माही ने मुझे बोला "सुबह उसे कंपनी की कैब लेने आएगी और उसे कुछ दिन जल्दी जाना है"।

अगले ही दिन मैं माही के पीछे चल दिया। कुछ ही दूर चलने पर माही एक गाड़ी में बैठी और चली गईं। मैने पहचान लिया था वो गाड़ी हमारे दोस्त की है। और माही ,मुझसे बोली थी उसे ऑफिस कैब लेने आएगी।

मेने दोपहर में अपने दोस्त को फ़ोन किया और उससे उसका हाल पूछा और उसने बताया वो दफ़्तर नहीं जा रहा है, उसे बुखार है।

मैं फिर मैं खिड़की से अपनी बातें करने लगा। उससे उसकी राय पूछने लगा।

उतनी ही देर में शाम हो गई और माही लौट आई। मैने खाना लगाया और माही के लिए लिखा एक शेर पढ़ा तो माही हसकर सोने चल दी। मैने माही को बोला "अर्जुन को बुखार है और तुमने बताया नहीं। हम इस वीकेंड उसके घर जायेंगे"। वीकेंड आया तो हम दोनों उसके घर चल दिए। उसने भी एक कहानी झड़ रखी थी। ये सब सुन कर हम घर लौट आये।

माही अगली सुबह जब ऑफिस के लिए तैयार हो रही थी तो बीच में आकर गले लगाकर रोने लगी। तो मैंने उसका कारण पूछा।

बात यह थी कि माही के झुमके मैने अर्जुन के घर में पाए थे और आकर झुमके उसके बॉक्स में रख दिए थे। माही को याद था ये अर्जुन के घर में रह गए थे जो उसने लिए नहीं तो ये यहाँ कैसे आये। वो सब जान चुकी थी।

मैंने माही से इसका कारण पूछा तो वो उस खिड़की की और देख अंदर गई और अपना बैग ले घर से चली गयी।

दो दिन बाद मुझे एक काम का ईमेल आया और में वापिस उस खिड़की से बात करते काम करने लगा। और मेने ध्यान दिया उसकी बोगनवेल अब बड़ी हो गई है और उसके ऊपर मैने एक शेर लिखा।

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