पहली भेंट
तुम उस गीत का अंतरे के बाद का संगीत हो,
जिसे गाया नहीं, गुनगुनाया जाता है।
एक माँ, उस धुन से संधि करती है,
शिशु को सुलाने वक़्त,
इतनी नीरव हो तुम।
तुम जब रोई थी,
एक चुप, भूखे और कमज़ोर बच्चे का सन्नाटा सुन्न,
कुछ आंसू मुझ पर भी गिर गए थे,
मैंने अभी उन्हें पोंछा नहीं है,
और पोंछने का मन भी नहीं है।
क्रोध से भिड़ता तुम्हारा स्नेह,
मैंने ग्रहण कर लिया है।
तुम्हारे हृदय में एक सांस ऐसी भी है,
जिसे एकांत में लेती हो तुम,
मैंने उसकी धड़कन सुनी है,
बुद्ध जैसी, एकाग्र है।
तुम यमुना हो उस रात की,
जब कृष्ण ने इंसानी सांस ली थी,
और मैं शायद उस कृष्ण का पाँव।
तुम एक अध्यापिका हो,
जिसे कुछ नहीं आता,
बस प्रेम आता है।
तुम पंख भी हो उस उड़ान की,
जिसे मैं भरने वाला हूँ।
घर पहुँचने के लिए।
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