प्रेम
ना समझना चाहूँ तो युवा ही मर जाऊँ
उलझन में बैठूँ तो प्रेम खींच लाता है
सुलझते हए देखूँ तो प्रेम उलझा जाता है
स्त्री को समझूँ तो प्रेम हो जाता है
मर्द मारता देखूँ तो प्रेम खो जाता है
द्रौपदी और कृष्ण को जानूँ तो प्रेम याद आता है
दुशासन को जानूँ तो प्रेम भाग जाता है
सहेली के साथ प्रेम सम्मान लगता है
वैश्या के समक्ष प्रेम काम लगता है
प्रेम से मोह करूँ तो बंद सा लगता है
ना ही करूँ तो दुर्गन्ध सा लगता है
प्रेम से देखूँ तो पृथ्वी में पल रहे जीव अपने लगते है
प्रेम से मुँह फेरूँ तो सब अनुचित सपने लगते है
दर्पण में सजते तुम्हें जो देख लूँ तो प्रेम जीवित लगता है
किसी और के समक्ष तुम्हें देखूँ तो प्रेम अजीवित लगता है
स्वयं के चित्त को देख लूँ तो प्रेम जान जाऊँ
कोशिश ना देखने की करूँ तो खुद को मृत मान जाऊँ
प्रेम को समझ लूँ तो घना वृक्ष हो जाऊँ
ब्रह्माण्ड को कविता सुनाता अंतरिक्ष हो जाऊँ
beautiful 💯💯
ReplyDeleteThis is really beautiful ❤️
ReplyDeleteVery right
ReplyDeletePrem ko itni gehrayi se samajhne wale premi ko mera prem bhara naman
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