माँ
पंछी ये जो हज़ार, निर्भय उड़ पा रहे है,
उनकी माँ की ममता का आँचल हवा में ज़रूर घुला होगा।
मैं कैसे राग मुक्त हो गया हूँ,
मेरा चरित्र, मेरी माँ के साफ़ पालन से धुला होगा।
मेरी माँ जब तक मेरी लिखी एक कविता अपने साथ ले सो नहीं जाती,
ऊँचे पर्वत पर लहराती मेरी कामयाबी और ज़िन्दगी, अधूरी रहेगी।
मैं वो क्षण समेट लूंगा अपनी आत्मा में,
जब मेरी माँ, मेरी लिखी एक नज़्म, अपनी आवाज़ में पूरी कहेगी।
मेरी माँ के सपने, बिन किसी को बताएं आंसुओं के साथ बह चले गए थे,
अब उन्हें मेरे पास उछलती तरंगों से लड़, साहिल पर आना पड़ेगा।
मैं उनको फिर से माँ के भोजन में परोस दूंगा,
आँख से नहीं, अब उनको माँ के लम्बे ओठों से बाहर जाना पड़ेगा।
मेरी माँ में एक सुखद सुगंध है,
वो खुशबू मैं अपनी कबर की मिट्टी में भर दूंगा।
कोई कब्रिस्तान पर रोने आया तो,
उनकी पीड़ा कम करने के लिए थोड़ी बाँट भी दिया करूंगा।
जैसे पतीले में बचा आखिरी चावल बिन लोभ वो बाँट देती थी।
मेरी माँ के पास एक साड़ी थी,
मैंने उसे पर्दा बना अपनी खिड़की पर सजा रखा है।
साड़ी में आ चुके छेदों से गुज़रती धूप और हवा,
मेरे परिश्रम को ज़ंग नहीं लगने देती।
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