घर लौट के आ जाना।
साया तुम्हारा जब अकेला दोस्त रह जाये,
आँख का आखिरी आंसू तक बह जाये,
तुम्हारी देह हर तरह का दर्द सह जाये,
और दुनिया का हर रिश्ता जब अलविदा कह जाये,
तुम लौट के घर को आ जाना।
दिल की धड़कन से जब दुश्मनी होने लग जाये,
ज़िन्दगी का मकसद अनजानी भीड़ में खोने लग जाये,
पदार्थवादी वस्तुओं को देख मन मोहने लग जाये,
त्रस्त अँधेरे में साहस की लौ जब खोने लग जाये,
तुम लौट के घर को आ जाना।
बेगाने संबंधों का ढेर जब तुम्हें छांटने लगे,
असफलता का कीड़ा जब काटने लगे,
अकेलापन, हृदय को टुकड़ों में बांटने लगे,
द्वेष तुम्हारा, मुस्कुराहट को डांटने लगे,
तुम लौट के घर को आ जाना।
तुम लौट के आ जाना घर को।
हम मद्धम आंच पर पक्की चाय के साथ,
करेंगे तुम्हारी उपलब्धियों की बात।
तुम्हारी नींद जब गहरी हो जाएगी,
नकारात्मक अनुचित चेतना स्वयं बहरी हो जाएगी।
माँ, निर्मल स्नेह की चादर ओढ़ सुला देगी,
चाँद के संदूक में समेटी लोरियों को भी बुला लेगी।
गर्भ में बजती धड़कन का संगीत तुम्हें सुनाया जायेगा,
आनंदित जीवन का सार एक बार फिर से गाया जायेगा।
तुम लौट के बस घर को आ जाना।
Kitne anokhe ho gaye tum
ReplyDeleteKapdo me snagharsh ki
tamam nakkashiyan hain
gardisho aur smritiyo se nirmit
ek alishan makaan ho gaye tum
jab chai se nikle safed bhaap
Hriday ke galiyaro se gujregi
jane kitni kahaniya parat dar parat
unmatt ho jayenge zarre zarre
na din gujrega aur na raat gujregi..