वो क़र्ज़ लौटाना था तुम्हे

वो-क़र्ज़-लौटाना-था-तुम्हे

वो क़र्ज़ लौटाना था तुम्हे,
पर तुम चले गए।
वो फ़र्ज़ लौटाना था तुम्हे,
पर तुम चले गए।

वो कबूतर रूठे बैठे हैं,
अब खाना खाने नहीं आते।
उस भरे कसोरे में,
अब वो नहाने नहीं आते।

पतंगों से भरा कोठा,
थोड़ा सुनसान रहता है।
वो ऊँची पतंग हमारे घर से है,
शहर उससे थोड़ा अब अनजान रहता है।

वो पौधेजो लगाए थे तुमने,
काफ़ी बड़े हो गए हैं।
बे-मौसमी हवाओं को चीरते,
अपने पैरो पर खड़े हो गए हैं।

उन पौधों पर फूल  रहे हैं,
ये बात बतानी थी तुम्हे।
और उन खिलखिलाते फूलों की महक़,
लौटानी थी तुम्हे।

पर दुःख इस बात का है,
तुम चले गए हो।
हम पर भारी कर्ज़ छोड़े।
हाँ तुम चले गए हो।


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