तू किसी रेल सी गुज़रती है
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता
हूँ
एक जंगल है तेरी आंखों
में
जहाँ मैं राह भूल जाता
हूँ
तू भलें रत्ती भर न सुनती
है
में तेरा नाम बुदबुदाता
हूँ
किसी लम्बे सफ़र की राहों
में
तुझे अलाव सा जलाता हूँ
एक बाजू कट गई जब से
और ज्यादा वज़न उठाता हूँ
मैं तुजे भूलने की कोशिश
में
और कितने करीब पाता हूँ
कौन ये फासले निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ
सच बताता हूँ
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता
हूँ
Source- Masaan and Dushyant Kumar
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