कुछ यादें गुजरी हुई


ये दुनिया चलती है,
गुज़रती है,
भागती है,
लड़ती है,
झगडती है,
मरती है,
जीती है,
नफ़रत करती है,
प्यार करती है,
कुछ बनाती है,
कुछ तोडती है,
पर जैसी भी है चलती है,


गुज़र रहा था कल एक गली से,
सुनी एक बच्चे कि किलकारी,
उसे निहारती माँ कि ममता,
कांधे पे खिलाते उसके पिता,
मैं रुका,
उस बच्चे को देखा,
मुस्कुराया,
चल दिया,

आगे चला,
कुछ तारे मिले,
खेलते हुए,
खिलखिलाते हुए,
नाचते हुए,
बिन वजह मुसकुराते हुए,
बिना गम के,
वो शांत थे,
भोले थे,
अनजान थे,
मासूम थे,
पर खुश थे,
वहाँ खड़े मैंने बिन आईने के अपने आप को देखा,

आगे चल दिया,
औरते थी कुछ,
आदमी थे कुछ,
बातों में मस्त,
अपने काम में व्यस्त,
बच्चो की फिक्र में,
लोगो के जिक्र में,

घर लौटा,
उदास सा,
शांत सा,
बीमार सा,
घबराया सा,
अकेला सा,
पता नही वो क्या था,
कैसी बेचैनी थी,
कुछ बनने कि खुशी थी,
या अपनों से दूर रहने कि ख़ामोशी थी,

वो दिन बीत गए,
जब हम हँसते थे,
वो गली गुज़र गई,
जिसकी धुल में खेलते थे,
वो लम्हे याद करते है,
वो गली को महसूस करते है,
जहाँ हमारी परवरिश का फूल खिला था,
महका था, 

ये दुनिया बस चलती है,
रुको तो ठोकर मारती है,
भागो तो रोकती है,
साथ चलो तो पूजती है,
नाजाने किस रास्ते पे और कहाँ पहुँचने के लिए चलती है,
ये दुनिया बस चलती है.!!!

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