Gulzar - A Heart Touching Poetry


मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा हैं
सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं
और मेरे एक ख़त में लिपटी रात पडी हैं
वो रात बुझा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
 
पतझड़ हैं कुछ, हैं ना...
पतझड़ में कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों में एक बार पहन के लौटाई थी
पतझड़ की वो शांख अभी तक काँप रही हैं
वो शांख गिरा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
 
एक अकेली छत्री में जब आधे आधे भीग रहे थे
आधे सूखे, आधे गिले, सुखा तो मैं ले आयी थी
गिला मन शायद, बिस्तर के पास पडा हो
वो भिजवा दो, मेरा वो सामान लौटा दो
 
एक सौ सोलह चाँद की रातें, एक तुम्हारे काँधे का तील
गीली मेहंदी की खुशबू, झूठमूठ के शिकवे कुछ
झूठमूठ के वादे भी, सब याद करा दो
सब भिजवा दो, मेरा वो सामन लौटा दो
 
एक इजाजत दे दो बस
जब इस को दफ़नाऊँगी  
मैं भी वही सो जाऊँगी

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