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वन, माँ के गर्भ जैसा है

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  वन, माँ के गर्भ जैसा होता है, वहाँ नहीं होती खाने कमाने की चिंता, होता है बस धैर्य और चिंतन,  दूषित व्यवस्था वहाँ घर नहीं बनाती, वहाँ नहीं रहता शहर का शोर, वहाँ रहने के लिए पढ़ा लिखा होना आवश्यक नहीं है, वन बिन कुछ मांगे करता है आपका पालन और पोषण  शोर, घृणा, अन्याय संभव नहीं है वन में, उसके संविधान में सबका हिस्सा एक सा है, इंसान ने सबसे बड़ा पाप किया है शहर बनाकर,  जहाँ लकीरें खींच डाली कितनी सारी, वन में ईश्वर नहीं रहता, वह ख़ुद ईश्वर है, पाप पुण्य जाति अमीर ग़रीब रंग क़द ओहदा,  वहाँ नहीं है, वहाँ है बस शांत नींद, माँ के गर्भ जैसी, मनुष्य को चाहिए वन और वह खोज रहा है उसे शहर में, शहर में रहते है पांडव कौरव और कितने युद्ध, वन शरण देता है बस एकलव्य को, मन का मौन, कला की स्वतंत्रता प्रदान करता है बस वन, वन कभी नाराज़ नहीं होता मनुष्य की हिंसा से, वह ख़ुद को नष्ट करता रहता है धीरे-धीरे धीमे-धीमे  जैसे नष्ट करती रहती है विरह की दीमक प्रेमी के घर को