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प्रेम सितारों की गिनती की तरह है।

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प्रेमी लौट जाया करते है घर को पर प्रेम रहता है खड़ा  देखता है उन्हें दूर तक इस आस में वो उसे लेने आएंगे  आते है प्रेमी लौट कर उसके पास बार बार कितने प्रयास करते है उसे ले जाने को अपने साथ वो नहीं जाता उनके साथ  इसलिए नहीं वह नाराज़ है  इसलिए क्योंकि जब प्रेमी लौटते है  वो प्रेम में नहीं, प्रेम के ढोंग में होते है प्रेम तो एक माँ की तरह है  उसे याद नहीं रहता  दूर्व्यवहार, हिंसा और अशांति  उसे याद रहते है स्नेह, वात्सल्य और प्रतिबद्धता वह उस घर कभी नहीं लौट पाता  जहाँ संतान उसे वृद्ध आश्रम छोड़ आती है  प्रेम सितारों की गिनती की तरह है बार बार टूटने पर भी भरा रहता है आकाश में  प्रेम को आधे रास्ते छोड़ कर जाना ऐसा है जैसा है घर को छोड़ जाना  तुम समय पर न लौटे तो  उसे खा जाती है दीमक, कीट पतंगे और खालीपन प्रेम अगर जीवन में आए तो उसे ऐसे रखना जैसे रखते है मंदिर में ईश्वर को अगर जीवन एक पौधे जैसा है तो प्रेम, धूप और पानी सा आहार है