भूल गई वो
भूल गई वो समंदर किनारे की ठंडी मीट्टी को इज़हार की हुई मेरी लिखी चिठ्ठी को खुले आसमान के नीचे मिलन की रातों को जलते अलाव में की हुई सर्द बातों को. भूल गई वो पहली रात का बिस्तर उस पर बिछी गुलाब की पत्तिओं को निखरती जवानी की महकती सिस्कीओं को उस बगीचे के फूलों को जंग लग चुके हमारे झूलों को भूल गई वो हमारे सावन की पहली बारिश को टूटे तारे से मांगी हुई हमारी ख़्वाइश को आँगन में खिले गेंदे की महक को मधुमखिओं का उनसे चुम्बन सुबह होती चिडिओं की चहक को भूल गई वो सब पिछले पत्तझड की एक रात को खिड़की पे टांग चली गई वो मेरे सहमे जज़्बात को.